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कभी दिल जला कभी जान भी
ज़रा ज़रा सि रनजिशे
कभी दिल जला कभी जान भी
कभी खो गई मुस्कान भी
मै अपनो के काबिल नही रहा
ये जानते है अन्जान भी
मेरे साथ अक्सर रहते है
कातिल मेरे मेहमान भी
धरती पर ज़ुलम देख कर
रूठा है आसमान भी
वो बदल गया खुदा सा जो
फ़रिस्ता था बना शैतान् भी
बस ज़रा ज़रा सि रनजिशे
ना भुला सका इन्सान् भी
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