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खामोश् मोहब्बत्


खामोश् मोहब्बत्
मेरी खामोश् मोहब्बत् का
इतना तो सिला दिया होता,
कभी एक नज़र चाहत से
देख ही लिया होता.
हम भी तुझे इश्क़्-ओ-मोहब्बत्
से आशना करते,


बस इक बार अपने दिल में
आने तो दिया होता.
क्या जाता तुम्हारा बस
हमे ही दिल से ख़ुशी मिलती,
अपनी ज़िन्दगी की किताब में
नाम हमारा भी लिख लिया होता.
देख लेते ज़रा घोर् से शायद,
तुम्हारे हाथ की लकीरौ में
हमारी किस्मत् का भी दीया होता.

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