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AI MERE HAMRAAJ




इक क़तरा हूँ उस की आन्ख् का .... के ..
जब वोह सोचे.. और मैं उसे मिल जाउ ... !!!
आन्सू मेरे यूँ ना आँखों से टपका करो
यूँ ना मेरे राज़सब को बताया करो
चुप चाप से तन्हाई में इक वीरान् सी डगर् पर
इक उदासियो का मकान बनाया करो

 
सारी शाम यूँ बे-रंग चेहरा लेकर सब के सामने ना जाया करो
कोई देख लेगा तो क्या होगा
किसी को ख़बर ना लगे हमारी इस बेबसी KI
बस अपनी ही दुनिया में खो जाया करो
ज़माने के सारे
रंग इन होन्ठो पर सजा लिया करो

ज़िन्दगी के सारे दुःख अपने दिल में छुपा लिया करो
ये तुम्हारे आन्सू मोती जैसे हैं
इन्हे यूँ बात बे-बात पर ज़ाया ना किया करो
वैसे भी उदास होके क्या मिलता है
दिल को दुखा के क्या मिलता है
बस ज़िन्दगी को अपनी आँखों से नही
दुसरो की आन्खो से देखा करो
दिल रोता है तो रोने दिया करो
मगर अपनी आन्खो को ना छल्काया करो
वक़्त एक सा कहाँ होता है
आज अच्छा
कल बुरा
बस ज़िन्दगी के सारे रंग अपनी आन्खो में सजाया करो
मगर कभी अपनी पलको से अश्क ना बहाया करो..

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