मैंने पूछा कैसे हो
बदले हो या वैसे हो
रूप वही अन्दाज़ वही
या फिर इस में कोई कमी
हिज्र्र् का कुछ एहसास् तो होगा
कोई तुम्हारे पास तो होगा
मैं बिछ्डी ये मज्बूरी थी
कब मन्ज़ूर मुझे दुरी थी
साथ हमारा कब छुटा है
ऱूह् का ऱिश्ता कब टूटा है
आन्ख् से जो आन्शु बहते हैं
तुम को खबर है क्या कहते हैं
मैंने कहा आवाज़् तुम्हारी
आज भी है हमराज़ हमारी
फूल वफ़ा के खिल जायेन्गे
इक दिन फिर हम मिल जायेन्गे
बदले हो या वैसे हो
रूप वही अन्दाज़ वही
या फिर इस में कोई कमी
हिज्र्र् का कुछ एहसास् तो होगा
कोई तुम्हारे पास तो होगा
मैं बिछ्डी ये मज्बूरी थी
कब मन्ज़ूर मुझे दुरी थी
साथ हमारा कब छुटा है
ऱूह् का ऱिश्ता कब टूटा है
आन्ख् से जो आन्शु बहते हैं
तुम को खबर है क्या कहते हैं
मैंने कहा आवाज़् तुम्हारी
आज भी है हमराज़ हमारी
फूल वफ़ा के खिल जायेन्गे
इक दिन फिर हम मिल जायेन्गे
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